औगडदानी, नील कंठेश्वर, योगेश्वर अवधूत के नाम भगवान शिव के ही नाम हैं जो दर्शाते है कि इस संसार में शिव शून्य है और शिव ही ब्रम्हांड हैं | जो योग, तप और वैराग्य के प्रतीक हैं | जिनके गले में विषधर, ललाट पर चंद्र और जटाओं में गंगा विराजमान हैं | ऐसे देवों के देव महा देव को भला भांग, धतूरा, आक, कनेर, गांजे जैसे विषैले फल फूल क्यों पसंद हैं ? आइये हम जानते हैं पुराणों में इनको लेकर क्या वर्णित है | आखिर क्या है इनका आध्यात्मिक, धार्मिक और पौराणिक रहस्य |
ऐसा माना जाता है कि औगड़दानी भगवान शिव को यदि सच्चे मन से विष अर्पण भी कर दिया जाए तो उन्हें वह भी स्वीकार होता है |

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जहरीले फल-फूल से हो गए भगवान प्रसन्न (कहानी)
भगवान शिव की भक्ति को लेकर एक कथा प्रचलित है कि सदियों पहले की बात है एक गांव में बहुत सारे शिव-भक्त रहा करते थे | जो भगवान शिव की तपस्या में लीन रहते थे | भगवान को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त अच्छे-अच्छे पकवान बनाते, मीठे-मीठे फल और सुंदर-सुंदर पुष्प भगवान को अर्पित करते थे | हर घर से धूप कपूर की सुगंध फैली रहती थी | वहीं गांव में रहने वाला एक युवक का जिसे सब हेय दृष्टि से देखते थे, गरीब घर का दरिद्र था | वह अक्सर कहीं भी शिव भगवान का पूजन होते देखता था तो वहीं तन्मयता से बैठ जाता था | किंतु गांव के लोगों को यह पसंद नहीं था | वे अक्सर उस गरीब को वहां से भगा दिया करते थे | एक दिन वह गांव वालों के इस तिरस्कार से तंग आकर गांव के वाहर बने जीर्ण शीर्ण मंदिर में एकांत मे रहने लगा | वह एक पौराणिक शिव मंदिर था | युवक भूखा प्यासा मंदिर में बैठा था तभी उसे आसपास लगे जंगली कटीले फल-फूल दिखे | वह इन कटीले जहरीले फल फूल को तोड़कर भगवान शिव के ऊपर चढ़ाने लगा | ऐसे ही भूखे प्यासे वह सावन के पूरे महीने भगवान शिव को पूर्ण तनमयता से धतूरे, कनेर, आक का फूल, भांग, गांजा सहित अन्य जंगली फल-फूल अर्पित करता रहा | युवक की इस भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उसे दर्शन दिए | जब भगवान शिव जीर्ण-शीर्ण जंगल में स्थित मंदिर में प्रकट हुए तो वहां एक अलैकिक रौशनी उत्पन्न हो गई | जिसे देखकर पूरा गांव मंदिर में एकत्रित हो गया | वहां बैठा युवक इस रौशनी से बातें कर रहा था | गांव के लोग अचरज में पड़ गए | रौशनी के गायब होने के बाद जब लोगों ने युवक से पूछा तो उसने बताया वह भगवान शिव से बाते कर रहा था | अब गांव के लोग अपने किए पर शर्मिंदा थे | लोग उस युवक के चरणों में सिर रखकर छमा प्रार्थना कर रहे थे | लोग कह रहे थे कि हम दिखावा करते रह गए और इस युवक ने सच्चे हृदय से भगवान को जहरीले फल फूल अर्पित कर के प्रसन्न कर लिया | तब से गांव के लोगों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए आकौआ, भांग और कनेर जैसे जहरीले पौधो के फल फूल चढ़ाना शुरू कर दिए |

अकौआ, आक, अर्क का फूल

आक का फूल, जिसे संस्कृत में “अर्क” कहा जाता है, एक विषैला पौधा माना जाता है इसके पत्तों और पूलों को तोड़ने पर दूध के जैसा दिखने वाला अत्यंत विषैला दृव्य निकलता है । लेकिन यही विषता भगवान शिव को प्रिय है, क्योंकि वे विषों के संहारक और उन्हें धारण करने वाले हैं। कहा जाता है कि भगवान अपने भाक्तों का हर कष्ट, हर दुख-दर्द ऐसे ही फल फूल की भांति अपने ऊपर ले लेते हैं और उन्हें सुख प्रदान करते हैं |
जैसे समुद्र मंथन के समय उन्होंने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था, जिससे उनका नाम “नीलकंठ” पड़ा।

आक का पौधा बंजर और कठोर भूमि पर भी उग जाता है। बिना किसी विशेष देखभाल के यह पनपता है | यह तप, सहनशीलता और आत्मत्याग का प्रतीक है। भगवान शिव खुद भी एक तपस्वी, विरक्त और अघोरी साधक हैं। इसलिए आक के फूल का ये गुण उन्हें बहुत प्रिय है।

शिव पुराण और पद्म पुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान शिव आक, धतूरा, भांग अर्पण करने से प्रसन्न होते हैं|

माना जाता है कि आक का फूल नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और शिव को प्रसन्न करता है |धार्मिक परंपरा और लोक मान्यता है कि मंदिरों में सोमवार के दिन विशेष रूप से आक का फूल चढ़ाने से भगवान प्रसन्न होते हैं | शिवरात्रि पर आक के फूल और पत्ते अर्पण करने से कष्टों का नाश होता है और शिव कृपा प्राप्त होती है।

भगवान शिव का एक रूप औघड़नाथ और अघोरी शिव का है।

वे सामाजिक नियमों और भोग-विलास से दूर रहते हैं और श्मशान, योग, तंत्र व विरक्ति के मार्ग पर चलते हैं। गांजा, भांग आदि अघोरी पंथ की चीजें हैं और शिव उनके अधिपति हैं। इसलिए यह उन्हें प्रिय मानी जाती हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तब भगवान शिव ने उसे पीकर अपने कंठ में धारण किया। इस विष की तीव्रता को कम करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने उन्हें भांग (गांजा) पिलाया, जिससे उनके शरीर की तपिश शांत हुई।
इसी कारण से भांग को शीतलकारी और शिव का प्रिय पदार्थ माना गया।

भगवान शिव को योग का आदिगुरु माना गया है, और भांग उनके इस योगी स्वरूप का प्रतीक है। यह मन को शांत कर देता है जिससे इसे ध्यान में सहायक माना जाता है |

कनेर का पुष्प भी भगवान शिव को प्रिय है

कनेर का फूल भगवान शिव को अर्पित किए जाने वाले प्रमुख फूलों में से एक है। यह सुनने में थोड़ा आश्चर्यजनक लगता है क्योंकि कनेर का फूल न तो अत्यंत सुगंधित होता है, न ही बहुत विशेष रंगों से सुसज्जित, फिर भी यह शिव को अति प्रिय है। इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और प्रतीकात्मक कारण हैं। कनेर का पुष्प तप, त्याग और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है |

कनेर का फूल कठोर परिस्थितियों में भी खिला रहता है, खासकर गर्मी और सूखे में। यही गुण भगवान शिव के तपस्वी और विरक्त स्वरूप से मेल खाता है।
पौराणिक मान्यता और ग्रंथों के उल्लेख में कनेर शिव को प्रिय हैं।
कनेर के पुष्प को अर्पित करने से रोग, दोष और ग्रह बाधाएं दूर होती हैं |

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