शिव के आंसू से जन्मा रुद्राक्ष | रुद्राक्ष की रहस्यमयी उत्पत्ति और चमत्कारी शक्ति | Rudraksha Story”

“जब सृष्टि का हर कोना विनाश और सृजन के बीच डगमगा रहा था… तब एक तपस्वी, शांत और सर्वशक्तिमान शक्ति अपनी आंखें मूंदे बैठा था — वो थे भगवान शिव।
और जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं…
उनके अश्रु से धरती पर जन्मा एक दिव्य बीज — जिसे हम ‘रुद्राक्ष’ कहते हैं।
यह केवल एक बीज नहीं… यह शिव का आशीर्वाद है, शिव की आंखों का तेज है…
जानिए रुद्राक्ष की वो रहस्यमयी कथा जो आपके जीवन को बदल सकती है।”

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इस वीडियो में जानिए रुद्राक्ष की दो प्राचीन पौराणिक कथाएं —

  1. भगवान शिव की महान तपस्या से उत्पन्न रुद्राक्ष
  2. त्रिपुरासुर वध के बाद शिव के अश्रुओं से बनी यह दिव्य माला
    ये कहानियां बताएंगी कि सद्राक्ष कैसे बना | भगवान शिव को यह इतना प्रिय क्यों है ? यह कहानी आपके मन को शांति देगी और आत्मा को शिव से जोड़ देगी |
    पहली कहानी

“जब सृष्टि का सारा संसार विनाश और सृजन के बीच झूल रहा था…
एक शक्ति थी जो सब कुछ शांत कर रही थी — वो थे भगवान शिव।
और उसी शिव के तप से निकला एक दिव्य रत्न… जिसे आज हम ‘रुद्राक्ष’ कहते हैं…”

पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार भगवान शिव सृष्टि के कल्याण हेतु गहन तप में लीन हो गए।
हजारों वर्षों तक उन्होंने एक ही स्थान पर ध्यान किया — ना कोई शब्द, ना कोई हलचल।
पूरा ब्रह्मांड उनकी इस तपस्या से प्रभावित था।

जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोलीं…
तो उनके नेत्रों से कुछ अश्रु बूँदें टपक पड़ीं।
इन आंसुओं ने जब पृथ्वी को स्पर्श किया,
वहीं से रुद्राक्ष वृक्ष उत्पन्न हुए।

इन वृक्षों पर जो बीज लगे, उन्हें ही “रुद्राक्ष” कहा गया। जिसका अर्थ है
रुद्र मतलब (शिव का उग्र रूप) और अक्ष मतलब (आंख या आंसू) = रुद्राक्ष यानि यह बीज शिव के नेत्रों से निकले हैं।
पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव ने कहा:
“जो भी भक्त मेरी भक्ति में रुद्राक्ष धारण करेगा,
उसे मैं अपने समान समझूंगा।
उसका जीवन कष्टों से मुक्त रहेगा,
और मृत्यु के समय उसे मोक्ष प्राप्त होगा।”

इसलिए रुद्राक्ष को केवल आभूषण नहीं,
बल्कि आध्यात्मिक शक्ति का वाहक माना गया।

दूसरी कथा में वर्णित है कि कैसे भावान ने त्रिपुरासुर का वध किया और रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई

बहुत प्राचीन समय की बात है। तीन असुर भाई थे — त्रिपुरासुर।
उन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था | वे तीन अलग-अलग नगरों में रहें और एक ही समय पर, एक ही बाण से मारे जाने पर ही उनका विनाश हो सके।
उनके नगर — स्वर्णपुर (सोने का नगर), रजतपुर (चांदी का नगर) और लौहपुर (लोहे का नगर)
तीनों अंतरिक्ष में घूमते रहते थे।
जब ये तीनों नगर एक सीध में आते थे, तब ही उन्हें नष्ट किया जा सकता था।

तीनों असुरों ने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया।
देवता परेशान हुए, तपस्वियों की यज्ञ-विधि बाधित हुई और धर्म नष्ट होने लगा।देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से सहायता मांगी,
परंतु यह कार्य केवल महादेव ही कर सकते थे।
भगवान शिव का महायुद्ध | पृथ्वी बनी रथ, सूर्य और चंद्रमा बने रथ के पहिए, पर्वत मेरु बना धनुष, सर्प वासुकी बना प्रत्यंचा (धनुष की डोरी), भगवान विष्णु बने बाण! शिव जी ने जैसे ही तीनों नगर एक सीध में आए — वैसे ही उन्होंने एक ही बाण से त्रिपुरासुरों का वध कर दिया। इस दिन को त्रिपुरारि शिव की विजय के रूप में जाना जाता है |विजय के बाद भी शिवजी का मन भारी हो गया।
उन्होंने आत्मचिंतन में डूबते हुए सोचा कि —
“मुझे इतना विनाश करना पड़ा… यह संसार कितना असंतुलित हो गया था।” उनके नेत्रों से करुणा के आँसू बहने लगे।
ये आँसू पृथ्वी पर गिरे और जहां-जहां गिरे, वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। 1 मुखी रुद्राक्ष शिव मोक्ष, मन की पूर्ण शांति का प्रतीक है | 3 मुखी अग्निदेव पापों का नाश करता है |
5 मुखी कलाग्नि रुद्र स्वास्थ्य और संतुलन बनाता है |
7 मुखी लक्ष्मी धन और वैभव दिलाता है|
9 मुखी दुर्गा शक्ति और भय से मुक्ति दिलाता है|
14 मुखी शिव की तीसरी आंख पूर्वाभास और निर्णय शक्ति माना जाता है | रुद्राक्ष में विद्युत चुम्बकीय तरंगें होती हैं जो मानव शरीर के नाड़ी तंत्र को संतुलित करती हैं। रुद्राक्ष पहनने से हार्टबीट स्थिर होती है, तनाव कम होता है, और एकाग्रता बढ़ती है।

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