भक्ति के लिए धनवान होना जरूरी नहीं है : आर्यिका श्री
विधान में 256 अर्घ्य हुए समर्पित


सुरेन्द्र जैन मालथौन।

मालथौन के जैन बड़ा मंदिर जी मे चल रहे श्री 1008 सिद्ध चक्र महामण्डल विधान में पंचम दिवस विधानचार्य नीलेश भैया एवं योगेश भैया ने मंत्रोच्चार कर अष्टद्रव्य से 256 अर्घ्य समवशरण में श्रावकों ने समर्पित किए।वंदनीय आर्यिका श्री सूत्रमती माताजी संसघ के मंगल सानिध्य हो रहे धार्मिक अनुष्ठान से धर्म प्रभावना बह रही हैं। सघस्थ विराजमान आर्यिका श्री शीतलमति माताजी ने धर्मसभा को संबोधित करते कहा कि भक्ति के लिए धनवान होना जरूरी नहीं है। उन्होंने आचार्य श्री एक प्रसंग सुनाते हुए कहा की उन दिनों की बात है आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का विहार पौंड्रा की चल रहा था ,नगर में अगवानी होंनी है। समाज के छोटे परिवार चूड़ी बेचने वाले व्यकिती ने चौका लगाने भावना भायी, उसने जैसे तैसे चौका लगाया। उसी समय असाता कर्म से आचार्य श्री के पैर हरपीच हो गई चलने में दिक्कत थी ,पौंड्रा में बहुत चोके लगे हुए थे एक से एक धनवान लगाए हुए थे। उस समय सब यही सोच रहे थे आचार्य श्री के आहार हो पास चोके में जाये ।लेकिन उसके चोके में पड़गाहन हो गया। जिसका एक किलोमीटर दूर था फिर आचार्य श्री उसके चौके आहार के लिए पहुचे। इस लिए कहते भक्ति के लिए धनवान होना जरूरी नहीं हैं मन में आस्था और शृद्धा होना आवश्यक हैं। आगे आर्यिका श्री ने कहा कि आचार्य श्री की दूरगामी सोच थी।पहले विधान करवाने के पंडित शास्त्री को तलाशना पड़ता है आचार्य श्री ने संघ के ब्रह्मचारी भैया को प्रतिष्ठाचार्य ,विधानाचार्य बनाया ।आज आचार्य श्री की कृपा से हर जगह विधान हो रहे हैं। बरोदिया कलां की सकल जैन समाज ने आर्यिका श्री को श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद लिया और विधान में भक्ति भाव से अष्ट द्रव्य समर्पित की।

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