आइये आज हम जानते है भगवान शिव के चन्द्रशेखर और सोमेश्वर बनने की कहानी | युगों पुरानी बात है जब राजा दक्ष प्रजापति ने अपने दामाद को श्राप दिया… तो चन्द्रमा का तेज बुझने लगा।
जब समस्त देवता असहाय हो गए…
तब एक ही शक्ति थी जो चन्द्र देव को बचा सकती थी —
विनाश और करुणा के परमस्वरूप — भगवान शिव! “और जब चन्द्र ने उनके चरणों में गिरकर कहा —’मुझे बचा लो प्रभु!’ तो महादेव ने न केवल उसे बचाया… बल्कि उसे अपने शीश पर स्थान देकर अमर कर दिया। “कहते हैं, जो शिव की शरण में आता है, वो कभी पूर्णतः क्षीण नहीं होता…

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इसलिए आज भी चन्द्रमा हर पूर्णिमा को वापस अपनी महिमा को प्राप्त करता है।” चन्द्रदेव जो स्वभाव से अत्यंत सुंदर, तेजस्वी और कलात्मक प्रवृत्ति के थे, उनका विवाह प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं से हुआ था। ये 27 कन्याएं आकाशीय नक्षत्रों की प्रतीक थीं – जैसे रोहिणी, कृत्तिका, अश्विनी, मृगशिरा, रेवती आदि। लेकिन समस्या तब उत्पन्न हुई जब चन्द्रदेव का स्नेह केवल रोहिणी पर ही केंद्रित रहने लगा। वे अन्य पत्नियों की उपेक्षा करने लगे। जिसके बाद बाकी 26 कन्याएं दुखी होकर अपने पिता प्रजापति दक्ष के पास गईं और चन्द्रमा की पक्षपाती प्रवृत्ति की शिकायत की।

प्रजापति दक्ष ने जब यह देखा कि चन्द्रदेव बार-बार समझाने पर भी अपनी प्रवृत्ति नहीं बदल रहे, तो उन्होंने क्रोध में आकर चन्द्रमा को भयंकर श्राप दिया उन्होंन कहा “हे चन्द्र! तुम दिन-प्रतिदिन क्षीण होते जाओगे, तुम्हारा तेज, आकार और प्रभाव समाप्त हो जाएगा।”

श्राप के प्रभाव से चन्द्रदेव का तेज कम होने लगा। वे दिन-ब-दिन क्षय होने लगे। उनका शरीर और प्रकाश लुप्त होने लगा। यह घटना सृष्टि के संतुलन के लिए बहुत घातक सिद्ध होने लगी क्योंकि चन्द्रमा की रोशनी ही औषधियों को ऊर्जा देती है, जल का संतुलन बनाए रखती है, और वनस्पतियों में अमृतरस भरती है |
अत्यंत पीड़ित होकर चन्द्रदेव सभी देवताओं के साथ भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुंचे। ब्रह्माजी ने उन्हें भगवान शिव की शरण में जाने को कहा, क्योंकि केवल शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो मृत्यु, विनाश और श्राप को भी पलटने की शक्ति रखते हैं।
चन्द्रदेव ने कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या की। वे बार-बार प्रार्थना करते रहे “हे नीलकंठ, हे शंकर! मैं आपकी शरण में आया हूँ, मेरी रक्षा करें।”

भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए। उन्होंने चन्द्रमा को दर्शन दिए और कहा “हे सोमदेव! दक्ष का श्राप टाला नहीं जा सकता, लेकिन मैं इसे संतुलित कर सकता हूँ। तुम पूरी तरह नष्ट नहीं होगे।”
शिवजी ने चन्द्रदेव को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। इसी कारण चन्द्रमा अब कभी क्षीण कृष्ण पक्ष होते हैं और कभी पूर्ण शुक्ल पक्ष हो जाते हैं। तभी से चन्द्रदेव भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं और शिव को “चंद्रशेखर” या “सोमेश्वर” कहा जाता है।
बैसे तो भगवान शिव और चन्द्र देव की कई कहानियां है मगर एक और कहानी है जो ज्यादा प्रचलित है वह है | समुद्र मंथन की कथा में चंद्रमा का शिव को अर्पण | इस कहानी का वर्णन विष्णु पुराण, भागवत पुराण, श्रीमद देवी भागवत कथा सार में की कहीं कहीं मिलता है | पुराने समय की बात है जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन्हीं में से एक था – “चन्द्रमा”। देवताओं में विवाद उत्पन्न हुआ कि चन्द्रमा को कौन धारण करे? तब सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। शिव ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया, जिससे वह “सोम” रूप में अमृतमय और शांतिदायक बन गए। इस कथा में चन्द्रमा एक रत्न के रूप में शिव को समर्पित होता है और भगवान शिव उसे अपने सिर पर स्थान देते हैं और सोमेश्वर कहलात हैं |

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