
धार्मिक स्थलों और शिवालयों में हम देखते है कि ‘भगवान शिव कि जटाओं में अमृत जल की धारा दिखाई देती है | आखिर कौन विराजमान है भगवान की शिखाओं में ? कैसे हुआ इस अमृत धारा का भगवान की शिखाओं में वास ? भगवान शिव के भक्त भगिरथ कौन थे और इन्होंने गंगा मैया को धरती पर बुलाने के लिए क्यों कई वर्षों तक तपस्या की थी ? कपिल मुनी कौन थे और उन्होंने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को क्यों भस्म कर दिया था ? ऐसे ही कई सवालों को जानने के लिए लाइव इंडिया24 चैनल पर देखते हैं भगवान शिव की जटाओं और माता गंगा के प्रथ्वी पर अवतरण की अनौखी कहानी |
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कौन थी गंगा ?
धार्मिक कहानियों के अनुसार अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीनों लोकों को अपने तीन पगों से नाप दिया था | इसी दौरान उनके चरणों से उछल कर जल ब्रम्हा जी के कमंडल में जा पहुंचा था | भगवान ब्रम्हा के कमंडल में समाए इस जल से उनकी पुत्री गंगा का जन्म हुआ | भगवान ब्रम्हा की पुत्री गंगा का वेग अत्यंत तीव्र था | जब गंगा बड़ी हुई तो उन्हें देखकर सभी दूर हट जाते थे | लोग गंगा के वेग और प्रवाह से डरते थे | माता गंगा जहां से निकलती सब कुछ बहा ले जाती थीं |
समय बीतता गया और धीरे धीरे इस बात का उन्हें घमंड भी होने लगा था| बहुत प्राचीन काल की बात है अयोध्या में राजा सगर का राज्य था | वे एक सूर्यवंशी और प्रतापी राजा थे | उनकी दो रानियां थीं, किन्तु उनके यहां कोई पुत्र नहीं था | उन्होंने कठिन व्रत कर पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया | जिससे उन्हें एक रानी से 60 हजार पुत्र हुए और दूसरी रानी के यहां एक पुत्र हुआ | राजा सगर के सभी पुत्र परम शक्तिशाली थे | राजा ने अपने पुत्रों का बल देखकर प्रथ्वी विजय का संकल्प लिया | इसी संकल्प के बाद राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया | जिसमें एक घोड़ा छोड़ा गया | राजा सगर के घमंड और 60 हजार परम शक्तिशाली पुत्रों की फौज देख कर इंद्र देव को डर सताने लगा की प्रथ्वी विजय के बाद राजा कहीं स्वर्ग लोक पर भी आक्रमण न कर दें | इंद्र देव ने अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा चुराकर मुनी कपिल के आश्रम में बांध दिया | कपिल मुनी अपने ध्यान में मग्न थे | कपिल मुनी दुनियां से परे कई-कई वर्षों अपनी तपश्या में लीन रहते थे | तभी राजा सगर के पुत्र यज्ञ के अश्व को खोजते हुए मुनी के आश्रम में जा पहुंचे | मुनी को अश्व का चोर समझते हुए उन्होंने अपनी शक्तियों के अहंकार में आकर तपस्या में लीन कपिल मुनी पर चारों तरफ से आक्रमण कर दिया | जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई और तंद्रा टूट गई | वर्षों से तपस्या रत कपिल मुनी की नजरों का तेज राजा सगर के 60 हजार पुत्र एक क्षण नही बर्दास्त नहीं कर पाए और भस्म हो गए | जब यह खबर राजा के पास पहुंची तो उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ | उन्होंने मुनी से क्षमा प्रार्थना कर पुत्रों की अकाल मृत्यु के पश्चात इस योनी से मुक्ति का मार्ग पूछा | तब मुनी ने बताया की जहाँ इनको कस्म किया गया है उस स्थान पर गंगा जल के छिड़कने से उनकी आत्मा पवित्र और मुक्त हो पाएगी | इतना कहकर वे पुनः अपने ध्यान मे मग्न हो गए | समय बीतता गया राजा सगर के वंश में राजा भगीरथ हुए | जब उन्हें पता चला कि उनके पूर्वजों की आत्मा प्रेत योनि में अभी भी भटक रही है तो उन्होंने उन सभी पूर्वजों की मुक्ति का संकल्प लिया |
परिजनों और ऋषियों से राजा भगिरथ को ज्ञात हुआ कि गंगा जल के छिड़कने मात्र से कुल के पूर्वजों को मुक्ति मिल सकती है | भागीरथ ने भगवान ब्रम्हा जी की कई वर्षों तक घोर तपस्या की | भगीरथ की तपस्या से खुश होकर बृम्हा जी ने अपनी पुत्री गंगा को धरती पर आने की प्रार्थना स्वीकार कर ली | यह बात जब गंगा को पता चली तो उन्होंने कहा कि मेरा प्रवाह और बेग इतना तीव्र है कि प्रथ्वी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा | मेरा बेग संभालने वाला कोई नहीं है | इसके बाद भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या प्रारंभ कर दी | वर्षों घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने गंगा माता को धरती पर लाने का वरदान दे दिया | स्वर्ग से उतरी गंगा अत्यंत वेग से प्रथ्वी पर पहुंची जहां भगवान शिव ने अपनी जटाएं खोल दी | गंगा भगवान की जटाओं में फसकर उलझ गई और बाहर निकलने का रास्ता तलाशने लगी | गंगा जी का भगवान शिव की शिखाओं में अस्तित्व खोने लगा | उनका घमंड़ चूर चूर हो गया | भगवान शिव से उन्होंने क्षमा प्रार्थना की और प्रवाह के लिए मार्ग मांगा | भगवान शिव ने उन्हें सदा अपने मस्तक पर विराजे रहने का वरदान दिया | भगवान ने उन्हें कम वेग से बहने का आग्रह किया, जिसके बाद भगीरथ आंगे-आंगे चलते गए और पीछे-पीछे गंगा मैया अपने पवित्र जल से सृष्टि का उद्धार करने लगीं | जिस स्थान पर भगीरथ के 60 हजार वंशज थे वहां जाकर उन्होंने उनका उद्धार कर उन्हें मोक्ष प्रदान किया | तब से माता गंगा प्रथ्वी वासियों का उद्वार कर रही हैं | इसलिए गंगा मैया को “बृम्हपुत्री” और “भागीरथी” भी कहा जाता है |