
जब सती ने खुद को जला लिया और शिव ने पहन ली चिता की भस्म | वह कथा जिसने शिव को अघोरी बना दिया 🔱”
भगवान शिव को भस्म क्यों प्रिय है?
क्यों भगवान को चिता की राख से अभिषेक किया जाता है?
राजा दक्ष, सती माता और शिव जी की कहानी क्या है? “क्या आपने कभी सोचा है… कि एक देवता जो योगी भी हैं, भोग से दूर हैं, तपस्वी हैं…, उन्हें ताजे मुर्दों की भस्म क्यों पसंद है? क्यों वो शवों के बीच बैठते हैं… और क्यों उनका अभिषेक जल नहीं… बल्कि राख से किया जाता है? ये कोई साधारण बात नहीं…, इस रहस्य में छुपा है एक गहरा दुख, एक क्रांति… और एक प्रेम की पराकाष्ठा। ये कहानी है माता सती के बलिदान की…, ये कहानी है प्रजापति दक्ष के घमंड की…, और ये कहानी है भगवान शिव के अघोरी बन जाने की।
धार्मिक कथाओं में प्रचलित ये कहानी युग युगांतरों पहले की है | जिसमें एक राजा प्रजापति दक्ष जो ब्रह्मा के पुत्र थे और उनकी पुत्री थीं सती माता | जिन्होंने कठिन व्रत और तपस्या से भगवान को वर के रूप में स्वीकार किया | माता सति भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। राजा दक्ष भगवान शिव को अघोरी, स्मशान में रहने वाला और अयोग्य वर मानते थे। लेकिन सती ने स्वेच्छा से भगवान शिव से विवाह कर लिया | कुछ समय बाद राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया। पुत्री सती ने सोचा पिता बुलना भूल गए होंगे, पिता का घर है ! सती ने बिना बुलाए अपने पिता के घर यज्ञ में जाने का निश्चय किया। भगवान शिव ने वहां जाने से इंकार कर दिया और अपने ध्यान में लीन हो गए | लेकित देवी सती ने अकेले ही जाने की ठान ली | वहां जाकर उन्होंने देखा कि कहीं भी न तो उनका सम्मान किया जा रहा है और न ही उनके पति भगवान शिव जी का सम्मान किया जा रहा है, बल्कि उनका अपमान हो रहा है।
वो इस अपमान को सहन न कर सकीं और नाराज होकर यज्ञ की अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को सती के आत्मदाह का समाचार मिला — उनका क्रोध भयंकर रूप में फूट पड़ा। उन्होंने अपने गण वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने जाकर दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव ने भयंकर गुस्से में तांडव नृत्य करना आरंभ कर दिया | जिससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया | भगवान शिव वहां पहुंचे और जिस यज्ञ में देवी सती ने आत्म दाह किया, जिस अग्निकुंड में जल कर उनका शरीर भस्म हो गया, भगवान शिव ने वही भस्म अपने शरीर पर मल ली। यह वही क्षण था, जब शिव ने संसार का मोह त्याग कर, एक अघोरी, एक वैरागी, एक तपस्वी रूप धारण किया। तभी से माना जाता है कि अथाह प्रेम और सर्मपण की प्रतीक भस्म भगवान शिव ने अपने शरीर पर धारण कर ली |
भस्म हमें यह सिखाती है कि अहंकार और माया — अंततः राख बन जाते हैं शिव — सबके भीतर विद्यमान वह चेतना हैं, जो शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी जीवित रहती है |