
भगवान ब्रम्हा जी से वरदान पाकर एक राक्षस इतना शक्तिशाली बन बन गया कि उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया | भगवान कार्तिकेय ने एक ही प्रहार से सारी सृष्टि को अत्याचारों से मुक्त करा दिया | आज के इस वीडियो में जानते हैं देवसेना के सेनापति भगवान कार्तिकेय की कथा | जिन्हें मुरुगतस्वामी, अयप्पा, सुब्रहमन्यम स्वामी, स्कंद देव के नामों से भी जाना जाता है |
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भगवान शिव के हो पुत्र थे जिनमें से एक पुत्र श्री गणेश भगवान जिन्हें देवताओं में श्रेष्ठ माना जाता है और हर पूजन के पहले श्री गणेश को पूजा जाता है | वहीं भगवान शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र जो भारत के उत्तर क्षेत्र में ज्यादा पूजे जाते हैं | इन्हें देवताओं का सेना नायक भी माना जाता है | आज के वीडियो में हम बात करते है भगवान कार्तिकेय की जिन्हें अन्य कई नामों से भी जाना जाता है | इनमें प्रमुख नाम हैं मुरूगन, सब्रमन्यम, स्कंद, कुमारस्वामी, सष्ठमुख आदि हैं | जिस तरह से भगवान शिव की कथा रहस्यों से भरी है उसी तरह उनके पुत्र कार्तिकेय के जन्म और उनकी कथा भी रोचक है | क्योंकि भगवान कार्तिकेय का जन्म बृम्हांड की रक्षा के उद्देश्य से हुआ था | पुराणों में वर्णित है कि लाखों वर्ष पहले की बात है एक समय भगवान ब्रम्हा जी से वरदान लेकर एक असुर तारकासुर ने पूरे ब्रम्हांड में हाहाकार मचा रखा था | तीनों लोकों के जीब जंतु देवी देवता त्राहिमाम करने लगे थे | तारकासुर ने ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त करते समय बड़ी चालाकी की थी | वह जानता था कि माता सती के देह त्याग के बाद भगवान शिव घोर तपस्या में लीन हैं | इसलिए उसने ब्रम्हा जी से वरदान में मांगा कि उसको सिर्फ भगवान शिव जी का पुत्र मार पाए और कोई भी उसको न मार पाए | वरदान पाकर राक्षस तारकासुर और भी अत्याचार करने लगा | सभी देवताओं ने मिलकर भगवान से प्रार्थना करना शुरू कर दी | लेकिन भगवान अपनी योग निद्रा में लीन थे | कुछ स्थानों पर बताया गया है कि सभी देवताओं ने कामदेव को भगवान भोले नाथ की तपाऱ्या भंग करने का काम सौपा | कामदेव ने भगवान की तपस्या तो भंग कर दी लेकिन उनके तीसरे नेत्र की अग्नि ने उन्हें भस्म कर दिया | भगवान शिव का क्रोध शांत होने के बाद सभी देवताओं ने अपनी व्यथा भगवान शिव को बताई | वहीं देवताओं ने देवी आदि शक्ति से पुनः जन्म लेने की प्रार्थना की | देवी सती का जन्म हिमवान और मैनका के यहां हुआ | उनका नाम रखा गया पार्वती | देवी पार्वती जब बड़ी हुईं तो उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने का संकल्प ले लिया| माता पार्वती ने भगवान शिव जी को पाने के लिए घोर तप करना शुरू कर दिया | माता पार्वती के इन्हीं घोर तप के चलते 16 सोमवार के कठोर वृत की परंपरा का जन्म हुआ | कई वर्षों के तप के बाद भगवान महादेव प्रसन्न हुए और माता पार्वती से विवाह किया |
पौगणिक कहानियों में वर्णन आता है कि विवाह के पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती से अलैकिक तेज निकला जिसे सूरज देव भी संभालने में अक्षम थे | तब वृतिकाओं ने इस तेज को संभाल और इस तेज से एक सुंदर और महान शक्तिशाली बालक का जन्म हुआ | इस बालक का नाम रखा गया कार्तिकेय | कुछ स्थानों पर यह बात भी आती हो कि भगवान कार्तिक के छः मुख भी थे | बालक कार्तिक ने जन्म के तुरंत बाद से संसार में पैले दुष्टों और रक्षसो का संहार प्रारंभ कर दिया | धीरे धीरे कार्तिकेय बड़े होने लगे | भगवान शिव ने कार्तिकेय को आदेश दिया कि तारकासुर के पापों का घड़ा भर चुका है उसका संहार कर दो | तब स्वामी कार्तिकेय ने एक ही बार से राक्षस तारकासुर का अंत कर दिया | इसके बाद सभी देवताओं स्वामी कार्तिकेय को देवलोक का सेनापति नियुक्त कर दिया |
भगवान कार्तिकेय की एक और कहानी मिलती है जिसमें भगवान शिव जी द्वारा श्री गणेश और स्वामी कार्तिकेय की परीक्षा लेने का निवाण आता है | भगवान शिव ने कहा कि दोनों संपूर्ण ब्रम्हांड का पिक्रमा कर के आओ जो पहले आयेगा उसे पुराकार दिया जाएगा | भगवान कार्तिकेय अपने तेज वाहन मोर पर बैठकर आकाश मार्ग पर उड़ गए | वहीं भगवान गणेश अपने चूहे पर सवार होकर माता पार्वती और भगवान शिव के परिक्रमा करने लगे | जब भगवान कार्तिकेय लौटे तो उन्हें भगवान गणेश के विजेत होने की खबर लगी | तब नाराज होकर भगवान कार्तिकिए उत्तर दिशा में एकांत स्थल पर चले गए | जहां वर्षों तक भगवान कार्तिकेय ने तप किया | भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया | तब से उत्तर और दक्षिण दिशाओं में भगवान कार्तिकेय का ज्यादा पूजन होने लगा | भगवान कार्तिकेय को अयप्पा, मुरुगन, सुब्रहमन्यम आदि नामों से भी जाना जाता है |