
जब भी हम भगवान महादेव की आराधना करने बैठते हैं तो सबसे पहले हमारे अंतर्मन में एक ही शक्ति जागृत होती है या यूं कहें एक ही मंत्र प्रकट होता है वह है “ॐ नमः शिवाय”
क्या आप ने कभी सोचा आखिर ऐसा क्यों होता है| “ॐ नमः शिवाय” मंत्र की महिमा क्या है | ॐ नमः शिवाय मंत्र से भगवान शिव क्यों प्रसन्न होते हैं |
क्यो प्रिये है भगवान शिव को ॐ नमः शिवाय मंत्र |
ॐ नमः शिवाय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई और इसका गूढ़ रहस्य क्या है | इस मंत्र का मतलब क्या है ?
ॐ नमः शिवाय में कौन सी शक्तियां निहित है?
“ॐ नमः शिवाय” — यह पंचाक्षरी मंत्र न केवल भगवान शिव की आराधना का सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्र है, बल्कि इसका गूढ़ रहस्य, आध्यात्मिक प्रभाव और वैज्ञानिक पहलू भी अत्यंत गहरे हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं |
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साधारणतः ॐ नमः शिवाय मंत्र का अर्थ बताया जाता है कि
ॐ नमः शिवाय मतलब “मैं भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ।”
ॐ मे छुपी है ब्रह्मांड की ध्वनि, सभी ध्वनियों का स्रोत, सृष्टि का मूल आधार |
नमः मतलब : नम्रता, समर्पण और विनम्रता का प्रतीक।
शिवाय : शिव को समर्पित है — जो कल्याण स्वरूप, संहारक और सृजनकर्ता हैं।
जो दर्शाता है कि “हे शिव, मैं स्वयं को आपके समक्ष अपनी समस्त चेतना, अहंकार और इच्छाओं सहित समर्पित करता हूँ।
वैसे तो पंचाक्षरी मंत्र की उत्पत्ति का रहस्य स्पष्ट नहीं है कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई किन्तु कई पुराण जैसे शिवपुराण, यजुर्वेद और से रुद्राष्टाध्यायी में प्राप्त विवरण के आधार पर ऐसा माना जाता है कि
यह मंत्र स्वयं भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को और फिर सप्तऋषियों ने संसार को प्रदान किया।
पंचाक्षरी मंत्र — “न”, “म”, “शि”, “वा”, “य” — पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है।
पाँच तत्वों की शक्ति:
न — पृथ्वी, म — जल, शि — अग्नि, वा — वायु, य — आकाश
शिवपुराण, लिंगपुराण व वेदों के संदर्भ से जो कथा प्रचलित है
बहुत प्राचीन काल की बात है। जब सृष्टि की रचना प्रारंभ होने ही वाली थी, तब चारों ओर केवल अंधकार, शून्यता और सन्नाटा था। ना आकाश था, ना पृथ्वी, ना देवता, ना जीव — बस एक अखंड ऊर्जा, एक निराकार तत्व था — वही थे भगवान शिव।
जब ब्रह्मा और विष्णु का प्राकट्य हुआ, तो उनमें यह विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से बड़ा कौन है। उसी समय एक अग्नि स्तम्भ प्रकट हुआ, जिसका आदि और अंत दोनों अदृश्य थे। दोनों देवता स्तम्भ के छोर को खोजने निकले — विष्णु नीचे की ओर गए और ब्रह्मा ऊपर की ओर। परंतु कोई भी उस स्तम्भ का अंत नहीं खोज पाया। वह स्तम्भ भगवान शिव का अनादि, अनंत स्वरूप था। उसी समय वहाँ शिव प्रकट हुए और उन्होंने बताया “मैं ही आदि हूं, मैं ही अंत हूं। तुम दोनों मेरी शक्ति से उत्पन्न हुए हो।”उसी समय भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का उपदेश दिया और कहा “जो कोई भी इस मंत्र का श्रद्धा से जप करेगा, वह मुझसे कभी दूर नहीं होगा। यह मंत्र स्वयं मेरे स्वरूप के समान पवित्र और शक्तिशाली है।”
इस प्रकार “ॐ नमः शिवाय” मंत्र की दिव्य उत्पत्ति भगवान शिव के स्वयंभू रूप से मानी जाती है।
भगवान शिव सारलता और भक्ति से प्रसन्न होते हैं। उन्हें विधि-विधान नहीं, भावना और श्रद्धा चाहिए।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र में केवल उच्चारण से ही पूर्ण समर्पण और शुद्ध भक्ति की अभिव्यक्ति होती है। यह मंत्र अहंकार को नष्ट कर आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।भगवान शिव महामौन, महायोगी और तपस्वी हैं — यह मंत्र उन्हीं की तरह शांत, गूढ़ और भीतर की यात्रा कराने वाला है। वैज्ञानिक आधार पर पावरफुल है ॐ नमः शिवाय
“ॐ” की ध्वनि मस्तिष्क में अल्फा वेव्स को सक्रिय करती है, जिससे मानसिक शांति और ध्यान की स्थिति उत्पन्न होती है। नियमित जप से तनाव, रक्तचाप और चिंता में कमी आती है। इस मंत्र के उच्चारण से हाइपोथैलेमस पर असर पड़ता है, जो हार्मोनल संतुलन में सहायक है।
यह मंत्र मस्तिष्क को एकाग्र करता है और ध्यान की गहराइयों तक पहुंचाने में सहायक होता है।