
आत्मा का गौरव ही गुरु महाराज है और जगत प्रपंच से सब त्रस्त हैं: श्री मुक्तानंद जी महाराज
श्री अमृत झिरिया परमहंस आश्रम में गुरुपूर्णिमा पर विशाल भंडारा संपन्न
सागर। श्री परमहंस आश्रम अमृतझिरिया, देवरीकलां में गुरुपूर्णिमा महा महोत्सव सेवा सुमिरण और समर्पण के साथ श्रृद्धा और भक्तिभाव के साथ गुरु पूजन और सत्संग तथा विशाल भंडारा करके मनाया गया। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं का आगमन आश्रम में हुआ। मौसम की अनुकूलता और आध्यात्मिक लाभ की लालसा में इस बार विशाल आश्रम में श्रृद्धालुओं की बड़ी संख्या के कारण कहीं भी स्थान रिक्त नहीं बचा था। आयोजित सत्संग में अपने आर्शीवचन में परमहंस संत श्री मुक्तानंद जी महाराज ने कहा कि आत्मा का गौरव ही गुरु महाराज हंै। आप सबकों जानना चाहिए कि आत्मा का स्वरूप सर्वत्र होता है। इसलिए अपने गुरु महाराज या आराध्य देव को सर्वत्र देखना चाहिए। वहीं आराध्य ही सर्वत्र और सर्वरूप है। वही जगत का कारण भी है और हम कार्य हैं। साधना-चिंतन करते हुए आत्मज्ञान के गौरव की गरिमा को बुद्धि में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जगत के प्रपंच को ही लोग सब मान लेते है। कहते है ईश्वर कहा हैं एवं ईश्वर को किस ने देखा है। जबकि मनुष्य स्वयं ही ईश्वर का अंश है। परंतु जगत प्रपंच में मन के भटकाव के कारण आप त्रस्त-पस्त व लस्त-पस्त हुए है। अवतारी पुरुष नर रूप में होते अवश्य है परंतु उनका शरीर भाव नहीं रहता। वे जानते है कि एक उद्देश्य पूर्ण करने के लिए आए है। जयकारे का महत्व बताते हुए श्री मुक्तानंद जी महाराज ने कहा कि जयकारा विकारों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त करने के लिए लगाया जाता है। इससे परमात्मा के अस्तित्व को सर्वत्र सर्वरूप और सर्वदा स्वीकार किया जाता है।
सत्संग में महाराज जी ने सभी शिष्यों और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक साधना का अभ्यास एवं अनुभव भी अपनी दिव्य चेतना से कराया। उन्होंने बताया कि अपनी जिव्हा को मुँह में नीचे तरफ चिपकाना है। इसमें जिव्हा के बीच की नस और मुंह के बीच की नस चिपकते है। इस स्थिति को ही निर्वाणी मुद्रा कहा गया। जब वाणी शांत हो जाए। इस अवस्था में भगवान का सबसे पावन और सहज नाम स्वाभाविक रूप से ही निकलता है। मीठा रस भी आने लगता है। उन्होंने कहा कि वैदों के पहले से भगवान का परम पावन नाम ‘ऊँ’ ही है। यह श्वास में बहुत सरलता से ढ़ल जाता है। साधक को चाहिए कि श्वास लेते और श्वास छोड़ते दोनों समय ऊँ का जाप करें। साथ ही अपने गुरु या इष्ट का आती-जाती श्वास में नख-शिख चिंतन करना चाहिए। इससे बहुत शीघ्र आध्यात्मिक विकास हो जाता है। आश्रम में श्री गुरुपूर्णिमा महोत्सव का यह 28वॉ आयोजन था। आश्रम में सुबह से ही विशेष पूजन, साजसज्जा और आरती आदि के कार्यक्रम प्रारंभ हुए। इसके उपरांत कतार बद्ध और पूर्ण अनुशासन के साथ भाविक भक्तों ने पुष्पाहार, श्रीफल, चंदन आदि से गुरुपूजन जयकारों के साथ किया। मंडली द्वारा गुरु महिला बाले भजन प्रस्तुत किए गए। इसके उपरांत भंडारा प्रारंभ हुआ। जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने गुरु प्रसाद प्राप्त किया। इस अवसर पर दिन भर आश्रम में श्रद्धालुओं का मेला लगा रहा। विभिन्न समितियों के सदस्यों ने व्यवस्थाओं को बेहतरीन संभाला। उल्लेखनीय है कि श्री परमहंस आश्रम अमृत झिरिया सागर जिले में अध्यात्म योग और आयुर्वेद की त्रिवेणी माना जाता है।