
सुरेन्द्र जैन मालथौन।
आचार्य भगवंत विद्यासागर जी महाराज के अवतरण दिवस के पूर्व तीन दिवसीय शरदोत्सव कार्यक्रम का आर्यिका श्री सूत्र मति माताजी संसघ के सानिध्य में मंगलाचरण दीप प्रज्वलित तथा ध्वजारोहण के साथ शुभारंभ किया।प्रभात बेला में प्रांगण में श्रीजी को पांडुशिला पर विराजमान कर अभिषेक पूजन हुआ जिसके पश्चात आर्यिका श्री सूत्रमती माताजी के मुखारविंद से विश्व के कल्याण और जीवदया की मंगल कामना के साथ शांतिधारा संपन्न हुई।
तद्पश्चात नृत्यमय पूजन के पश्चात आचार्य छत्तीसी विधान पूजन शुरू हुआ। आर आर्यिका श्री ने धर्मसभा को संबोधित करते कहा की भारत देश सोने की चिड़िया था,रामराज्य वाला देश है दूध और घी की नदियां बहती थी।फिर इसे वैभवशाली बनाना है। उन्होंने आचार्य श्री का संदेश इंडिया नहीं भारत बोलो यह उक्ताशय आर्यिका श्री सूत्रमती माताजी ने धर्म सभा को संबोधित कही। अच्छे कठोर से कठोर ह्रदय पिघल जाया करते और कुष्ठ रोगी ,दुखी प्राणी शीतलता को प्राप्त हो जाता है ऐसी शरद पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहो या उपकार दिवस मानो। आर्यिका श्री शीतलमति माताजी ने धर्मसभा को कृतार्थ करते हुए कहा कि भगवान ,गुरु और भक्त की महिमा के बारे बताते कहा कि जिनके सिर पर प्रभ और ,गुरु की छत्र छाया होती है वह बड़े भाग्यवान कहलाते है। आर्यिका श्री ने रामायण का प्रसंग भगवान रामचंद्र जी और भक्त हनुमान जी का सुनाते हुए कहा कि जब भगवान श्रीराम जी सभा मे उपहार बांट रहे थे। उन्होंने हनुमान जी पूछा कि तुम्हे क्या उपहार चाहिए।उन्होंने कहा कि प्रभु मुझे दो उपहार चाहिए ,प्रभु ने कहा तुम दो नहीं चार मांग लो तब हनुमानजी ने कहा नहीं प्रभु मुझे सिर्फ दो पद चाहिए। उनके चरणों जाकर बैठ गए और उन्होंने दोनों चरण कमल को पकड़ कर कहते प्रभु मुझे कि दोनों चरण कमल की आवश्यकता है यदि मेरे जीवन मे यही दोनों चरण पद रहेंगे तो सारे पद हमारे पीछे दौड़ेंगे। यदि यही चरण पद नहीं रहगे तो दुनिया के समस्त पद विलुप हो जायेगे। इसलिये अपने जीवन मे किसी दूसरे पद की आवश्यकता नहीं हैं मात्र आपके दोनों चरण ह्रदय में रहे। बस मेरे जीवन का उद्धार हो जायेगा। प्रभु श्रीराम कहते है अब कुछ देने को बचा नहीं तुमने सब कुछ मांग लिया हैं।इसलिए श्रद्धा भक्ति और आस्था के आगे दुनिया की कोई ताकत नहीं उसके पद के आगे, कोई दूसरा पद दे सके प्रभु के चरण कमल में सब पद मिल जाते है।
