हम सभी जानते हैं कि श्रृष्टि में भगवान शिव को प्रकृति का रूप माना गया है | जो अजर हैं, अमर हैं, जिनका न तो आदि है और न ही अंत है | ऐसे परम योगी के गले में सदा एक विषधर लिपटा फुंफकारता रहता है | हम सभी के मन में विचार आता है कि आखिर यह विषधर है कौन ? क्यों भगवान शिव ने एक सर्प को अपने गले में धारण कर रखा है ?
क्या रिस्ता है भगवान शिव के साथ इस नाग का ? आज सुनते है भगवान शिव के गले की शोभा बढ़ाने वाले विषधर नाग की वो कहानी जो हर शिवभक्त को जानना जरूरी है |

पुराणों और हिन्दु धर्म की मान्यताओं में प्रचलित कहानियों में वर्णन के अनुसार बहुत पुराने काल की बात है असुर और देवताओं ने अमृत कलश की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने का विचार बनाए | जिसमें मंद्रांचल पर्वत को मथानी बनाया गया | किंतु समुद्र मंथन के लिए इतनी विशाल रस्सी कहासे लई जाए यह सोचकर सभी परेशान थे | देवताओं ने नगालोक पाताल के स्वामी राजा वासुकी से प्रार्थना की | भगवान शिव के कहने पर वासुकी नाग ने रस्सी बनना स्वीकार कर लिया | जिसके बाद वासुकी नांग को एक तरफ से देवता तो दूसरी तरफ से दैत्यों हारा खींचना शुरू किया गया | देवताओं ने पूछ की तरफ का हिस्सा लिया जबकी दैत्यों को मुंह की तरफ का हिस्सा मिला | लगातार समुद्र के मंथन से जोरदार घर्षण पैदा होने लगा | वासुकी नाग का शरीर गर्म होने लगा जिससे उसके मुंह से जहरीली फुंककार निकलने लगी | विष इतना जहरील था की दैत्य और दानव दोनों बेहोश होने लगे | मंथन पूरा होने के बाद भी वासुकी का जहर निकलना बंद नहीं हो रहा था | जिससे सारी प्रथ्वी पर हाहाकार मचने लगा | देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की और श्रृष्टि को बचाने का आग्रह किया | भगवान शिव जो नश्वर हैं उन्होंने विषधर को अपने शरीर पर धारण कर लिया | जिसके बाद उसका विष उगलना बंद हुआ | वहीं एक और कथा मिलती है जिसमें समुद मंथन के बाद नागों के राजा वासुकी ने भगवान महादेव की अपार तपस्या की | कई वर्षों की तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए | तब वासुकी ने भगवान से वरदान मांगा की वो उनसे कभी दूर न हो | जिसके बाद भगवान शिव ने वासुकी को अपने गले में धारण कर लिया | पौराणिक कथाओं में एक और कहानी का वर्णन आता है जिसमें एक ऋषि कश्यप थे वासुकी उनके पुत्र थे | किंतु वासुकी की दो माताएं थीं | एक माता थी कद्रू जिनसे नगों का जन्म हुआ जैसे शेषनाग, तक्षक, वासुकी वहीं उनकी दूसरी माता थीं विनता जिनसे पक्षी राज गरुण का जन्म हुआ | किसी बात पर दोनों माताओं में तकरार हो गई | दोनों माताओं की संतानों में आपस में दुश्मनी हो गई | गरुण देवता ने कसम खा ली कि प्रथ्वी से सारे सर्पों को मारकर खा जाएंगे | गरुण देवता की इस सौगंध के बाद नागों में हड़कंप मच गया | नागों के राजा वासुकी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की | भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर वासुकी को अपने गले में धारण कर लिया | तभी से वासुकी भगवान शिव के गले में माला के रूप में सुशोभित है |

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