क्या आपने कभी सोचा है… भगवान शिव को बेलपत्र क्यों प्रिय है?
सिर्फ एक पत्ता… लेकिन इतनी शक्ति कि स्वयं महादेव को शांति दे सके…!
आइए जानते हैं इस पवित्र पत्ते की अद्भुत पौराणिक कहानी।”

“त्रिपत्रं च बिल्वस्य हेमदण्ड समप्रभम्।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।”
तात्पर्य है – बेलपत्र के तीन पत्ते ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिदेव) के प्रतीक माने जाते हैं। ये सत्व, रज, तम तीनों गुणों और शिव के तीन नेत्रों का भी प्रतीक माने जाते हैं। भगवान शिव पर श्रद्धा से बेलपत्र चढ़ाने पर भक्त की इच्छा पूर्ति होती है। मानसिक शांति और पूजा के दौरान इससे एकाग्रता मिलती है। भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाने से पाप क्षीण होते हैं। धन और सुख गृहस्थ जीवन में समृद्धि और सुख-शांति आती है।

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शिवपुराण में एक स्थान पर सामने आया है कि एक बेल पत्र चढ़ाने से सौ कमल चढ़ाने के समान फल मिलता है | बिल्व पत्र की पत्तियों पर लिखा ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र लिखकर शिव जी को चढ़ाने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
बिल्व पत्र को लेकर वैसे तो सैकड़ों कहानियां हैं लेकिन दो कहानियां ज्यादा प्रचलित हैं जिसमें पहली कहानी है :-

भगवान का क्रोध हुआ शांत
बहुत प्राचीन समय की बात है। एक बार धरती पर पाप, अत्याचार और अधर्म इतना बढ़ गया कि देवी-देवता भी असहाय हो गए। राक्षसों के अत्याचार से त्रस्त होकर सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए और सहायता की प्रार्थना की।
तब भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख से क्रोध में आकर राक्षसों का संहार किया, लेकिन शिवजी का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। उनका ताप इतना अधिक था कि सृष्टि को नष्ट करने लगा। सभी देवता भयभीत हो उठे – अगर भगवान शिव का क्रोध शांत नहीं हुआ तो पूरी सृष्टि समाप्त हो जाएगी। तब देवी लक्ष्मी ने देवताओं से कहा भगवान शिव को शांत करने का एक ही उपाय है कि उन्हें कुछ ऐसा अर्पण
किया जाए जो पवित्र, शुद्ध और ठंडक देते वाला हो | देवी लक्ष्मी ने अपने तप से बेल के वृक्ष की उत्पत्ति की। इस वृक्ष की पत्तियों में चंद्रमा की शीतलता, गंगाजल की पवित्रता और तुलसी जैसी सात्त्विकता थी। देवताओं ने बेलपत्र तोड़े और गंगाजल के साथ भगवान शिव के शिवलिंग पर अर्पित किए। जैसे ही बेलपत्र भगवान शिव पर चढ़ाए गए, उनका क्रोध शांत हो गया, और उन्होंने अपनी तीसरी आंख को बंद कर लिया। पृथ्वी पर जीवन फिर से सुरक्षित हो गया।

भगवान को बिल्व पत्र चढ़ाने का मिला फल

एक अन्य कथा भी प्रचलित है जिसमें एक शिकारी को उसकी भक्ति और अनजाने में की गई पूजा का फल मिला
एक शिकारी भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगल में शिकार की तलाश में भटक रहा था। दिन ढल चुका था, और शिकार नहीं मिला। वह एक बेलवृक्ष पर चढ़ गया ताकि रात में जानवरों पर नजर रख सके। उसी बेलवृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था, जो झाड़ियों में छिपा हुआ था। रातभर शिकारी को नींद नहीं आई। वह पेड़ की डालियों से उसकी पत्तिया तोड़-तोड़कर नीचे गिरता रहा । जिन पत्रों को वह रात भर गिराता रहा वह बिल्व पत्र थे और अनजाने में वह बेलपत्र भगवान के शिवलिंग पर गिरते रहे। सुबह होते ही उसका जीवन परिवर्तित हो चुका था | उसने शिकार नहीं किया, लेकिन घर लौटते समय उसकी आत्मा हल्की और प्रसन्न थी। उस रात उसने शिव की अज्ञात पूजा कर दी थी। उस दिन से उसका जीवन बदल चुका था | उसने शिकार करना छोड़ दिया | मन भगवान की भक्ति में रमने लगा | अगले जन्म में वह महान राजा चितरसेन बना।

बिल्व पत्र का न केवल धार्मिक वल्कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्व है |

आयुर्वेद में यह एक महत्वपूर्ण औषधि मानी जाती है।

*बेलपत्र पाचन सुधारता है *बेल के पत्तों का रस पेट की समस्याओं जैसे गैस, अपच, दस्त में उपयोगी है। *इसके पत्तों का रस ब्लड शुगर कंट्रोल करने में मदद करता है।*प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट तत्व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। *ज्वर और सूजन में भी इसका उपयोग किया जाता है |


वहीं आज के वैज्ञानिक दृष्टिकोण में भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाने के लाभ बताए गए हैं जिसमें :-
*बेल का पेड़ वातावरण को शुद्ध करता है और इसमें उच्च मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ने की क्षमता होती है। *बेल के पत्तों में मौजूद टैनिन, फ्लावोनोइड्स, और एल्कलॉइड्स शरीर को शुद्ध करने वाले प्राकृतिक रसायन हैं। *जब बेलपत्र को जल में मिलाकर अभिषेक किया जाता है, तो वह जल जीवाणुनाशक और शुद्ध हो जाता है। *बिल्वपत्र मानसिक शांति और ऊर्जा का संतुलन बनाता है |*बेलपत्र की गंध और ऊर्जा मन-मस्तिष्क को शांति देती है। यह मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करता है – विशेष रूप से ध्यान या पूजा के समय।

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